जैन धर्म (Jain Dharm) से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य - संस्थापक, त्रिरत्न, महाव्रत, महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

दोस्तों जैन धर्म (Jain Dharm) में ज्यादातर अमीर घर के लोग शामिल होते हैं इस धर्म में लोगों को किसी भी जीव-जंतु को न मारने की बात कही जाती है तथा हर जीव के प्रति स्नेह-प्यार बनाये रखना चाहिए इस धर्म में वर्णन किया गया है| आइये जैन धर्म के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं|

जैन धर्म (Jain Dharm)
Jain Dharm 

जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी को माना जाता है जो काशी के इक्ष्वाकु वंश के राजा अश्वसेन के बेटे थे|जैन धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव को माना जाता है|

जैन धर्म के संस्थापक (Jain Dharm ke Sansthapak)

 जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी को माना जाता है| महावीर स्वामी 24वें तीर्थकर के रूप में माने जाते हैं|

महावीर स्वामी का जन्म 540 ई. पू. में वैशाली के पास कुंडलग्राम में हुआ था |

महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञातक कुल के सरदार थे और उनकी मां लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी, महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्द्धमान था|महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी के साथ हुआ जिसके बाद इनकी पुत्री अनोज्जा प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ|

30 वर्ष की आयु के बाद इनके माता-पिता  का देहांत हो गया था जिसके बाद ये अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से अनुमति लेकर सत्य की तलाश में सन्यास जीवन को स्वीकार कर लिया| इसके बाद उन्होंने ने जंगल में  ज्रम्भिक गाँव के पास रिजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे रहकर 12 वर्ष तक घोर तपस्या की जिसके बाद उन्हें कैवल्य ( सर्वोच्च ज्ञान) की  प्राप्ति हुई |

ज्ञान प्राप्त होने के बाद महावीर स्वामी जी ने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली जिसके बाद उन्हें जिन की संज्ञा दी गयी जिसका अर्थ विजेता होता है हालाँकि इन्हें और भी नाम से जैसे- निर्ग्रंध (बंधन रहित) ,अर्हत (योग्य) आदि के नाम से भी जाना गया|

ज्ञानप्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने कोशल, मगध, मिथिला, चम्पा आदि जगहों पर घूमकर लगभग 30 वर्षों तक प्रचार-प्रसार किया| महावीर स्वामी ने प्राकृत भाषा में अपने उपदेश दिए| महावीर स्वामी का पहला अनुयायी उनके दामाद व प्रियदर्शिनी के पति जामिल बने| पहली जैन भिक्षुणी दधिवाहन की पुत्री चंपा बनी थी|

जैन धर्म में सांसारिक मायामोह के त्याग से मुक्ति को ही निर्वाण कहा गया है| कर्मफल से मुक्त होकर व्यक्ति निर्वाण की ओर बढ़ जाता है| 

जैन धर्म के त्रिरत्न (Triratn of Jain Dharm)

जैन धर्म के त्रिरत्न जो कर्मफल से मुक्ति प्रदान करने का मार्ग है इस प्रकार बताये गये हैं| 

  1. सम्यक दर्शन :- सत्य में विश्वास|
  2. सम्यक ज्ञान :- शंकाविहीन व वास्तविक ज्ञान|
  3. सम्यक आचरण :- सांसारिक विषयों से उत्पन्न होने वाले सुख-दुःख के प्रति समभाव|

जैन धर्म के पांच महाव्रत

त्रिरत्न का अनुशीलन करने के लिए पांच महाव्रतों का पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है|

  1. सत्य :- हमेशा सत्य एवं मधुर बोलो 
  2. अहिंसा :- मन, कर्म से किसी के प्रति असंयत, व्यवहार हिंसा है - इन सभी से बचना चाहिए| किसी भी जीव जंतु को नहीं मारना चाहिए| 
  3. अस्तेय :- बिना अनुमति लिए किसी के घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए और न ही निवास करना चाहिए|
  4. अपरिग्रह :- भिक्षुओं के लिए किसी भी प्रकार का कोई संग्रह नहीं करना चाहिए|
  5. ब्रम्हचर्य :- ऊपर के चार महाव्रत पहले से ही थे इसके बाद पांचवा महाव्रत ब्रम्हचर्य को महावीर स्वामी ने जोड़ा था | भिक्षुओं के द्वारा किसी नारी से वार्तलाप, उसे देखना या संसर्ग का ध्यान करना वर्जित है|

गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए भी इन सभी महाव्रतों का पालन करने की व्यवस्था की गयी लेकिन उनके लिए थोड़ा सरलता से पालन करने के लिए बोला गया जिसे 'अणुव्रत' नाम दिया गया|

जैन धर्म में सुलेखन का वर्णन किया गया है जिसका मतलब उपवास के द्वारा शरीर का अंत होता है|

मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में अकाल  पड़ जाने के बाद मैसूर के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर पर सुलेखन द्वारा उनकी मृत्यु हुई थी| 

महावीर स्वामी के अनुसार पुनर्जन्म में अर्जित पुन्य और पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है| 

बाद में जैन धर्म दो भागों में बंट गया जिसके नाम निम्न प्रकार हैं

  1. श्वेताम्बर :- ये श्वेत वस्त्र धारण करते थे इनका नेतृत्व स्थूलबाहु ने 12 वर्ष तक अकाल पड़ने पर किया था| 
  2. दिगंबर :- ये नग्न रहने में विश्वास करते हैं इनका नेतृत्व भद्रवाहु ने किया था| ये अकाल के समय मगध छोड़कर कर्नाटक के श्रवणवेलगोला चले गये थे| 

जैन दर्शन में तीन प्रकार के स्रोत माने गये हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान एवं तीर्थकर|

जैन धर्म के सदस्य चार भागों में बंटे थे - 

  1. भिक्षु 
  2. भिक्षुणी 
  3. श्रावक 
  4. श्राविका 

नोट :- भिक्षु - भिक्षुणी तो जैन धर्मं के सन्यासी हुए लेकिन श्रावक-श्राविका गृहस्थ जीवन में रहकर ही जैन मत का पालन करते थे|

महावीर नें स्त्रियों को पुरुषों के समान ही संघ में पूर्ण अधिकार देना स्वीकार कर दिया था|जैन धर्म दक्षिण और पश्चिम भारत में फ़ैल गया था|

चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक में जैन मत का प्रचार प्रसार किया था|

मगध में अकाल की समाप्ति के बाद जैन धर्म के उपदेशों को संकलित करने के लिए पाटलिपुत्र में एक महासभा का आयोजन किया गया, जिसका भद्रवाहू ने बहिष्कार कर दिया था|

5वी. शताब्दी के बाद कर्नाटक में जो शासकों के द्वारा भूमि दान दी गयी थी वहां पर अनेक जैन मठ स्थापित हुए| जैनों ने संस्कृत भाषा का परित्याग करके अपने धर्मोपदेश में सामान्य बोलचाल की भाषा प्राकृत भाषा को अपना लिया था|

जैन मत को मानने वाले लोग बौद्ध धर्म के जैसे मुर्तिपूजक नहीं थे लेकिन बाद में महावीर स्वामी एवं अन्य तीर्थकरों की पूजा होने लगी|

महावीर की सुन्दर और विशाल प्रतिमाएं कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बनायी गयीं| जैन धर्म के प्रमुख केंद्र मथुरा और उज्जैन काफी फेमस रहे |जैन धर्म में कृषि कार्य एवं युद्ध वर्जित है, क्योंकि इसमें जीव हिंसा की सम्भावना मानी जाती है| 

 जैन धर्म में दो सभाएं आयोजित की गयी थीं |

  1. पहली जैन सभा :- ये सभा मौर्यकाल के शासनकाल में आयोजित की गयी थी जिसमें जैन धर्म के प्रधान भाग में 12 अंगों का संपादन हुआ था| ये सभा भद्रबाहु और सम्भूति विजय के निरीक्षण में हुई थी|
  2. द्वतीय जैन सभा :- ये सभा छठी शताब्दी में देवार्धि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में गुजरात के बल्लभी नामक स्थान पर हुई थी|

जैन धर्म से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

1. जैन धर्म का संस्थापक किसे माना जाता है? -ऋषभदेव (Imp)

2. जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक किसे माना जाता है? - महावीर स्वामी

3. जैन धर्म किन दो भागों में बंट गया था? - श्वेताम्बर एवं दिगंबर 

4. जैन धर्म में किस भाषा का प्रयोग किया जाता है? - प्राकृत भाषा (SSC CHSL-2017)

5. जैन धर्म को किस मौर्य शासक ने अपनाया था? - चन्द्रगुप्त मौर्य

6. जैन धर्म में महावीर स्वामी किस नंबर के तीर्थकर थे? - 24वें (SSC-2015)

7. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर किसे माना जाता है? - पार्श्वनाथ

8. जैन धर्म के त्रिरत्न कौन-कौन से हैं? - सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक आचरण

9. महावीर स्वामी का जन्म किस स्थान पर हुआ था? - कुण्डलग्राम (UPSC)

10. महावीर स्वामी को  किस स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई? - ज्रम्भिक ग्राम 

11. महावीर स्वामी का विवाह किसके साथ हुआ था?- यशोदा 

12. महावीर स्वमी की पुत्री का क्या नाम था? -अनोज्ज्या प्रियदर्शिनी (SSC MTS 2017)

13. महावीर स्वामी के पिता का क्या नाम था? - सिद्धार्थ

14. जैन धर्म से सम्बंधित ऐसा कौन सा शासक था जिसकी मृत्यु उपवास के दौरान हुई थी? - चन्द्रगुप्त मौर्य 

15. चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु किस स्थान पर हुई थी? - श्रवणवेलगोला (कर्नाटक)


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धन्यवाद |

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1 Comments

Anonymous said…
मैं बहुत समय से कुछ सरल भाषा में जैनधर्म के इतिहास के बारे में खोज रही थी। आपकी पोस्ट में जैन धर्म को इतने सरल तरीक़े से बताया गया कि समझाना और आगे किसी को बताना आसान हो गया। बहुत-बहुत धन्यवाद आपके प्रयास के लिेए